Editorial:एशिया महाद्वीप में भारत के समक्ष बढ़ती कुटनीतिक चुनौतियां
- By Habib --
- Thursday, 15 Feb, 2024
India faces increasing diplomatic challenges in the Asian continent
यह चिंताजनक है कि भारत के पड़ोसी कई देश उसके विरोध स्वरूप चीन जैसे विस्तारवादी नीति के देश के साथ मिलकर नई समस्या खड़ी कर रहे हैं। बीते दिनों मालदीव के तीन मंत्रियों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्ष्यद्वीप की यात्रा के बाद जैसी टिप्पणियां की गई थी, वे न केवल भारत की संप्रभुता को चुनौती थी, अपितु राजनयिक रूप से मालदीव के चीन की चाल में फंसने की गवाही भी थी। हालांकि अब एक और नया खुलासा हो रहा है, जिसके तहत चीन का जासूसी जहाज मालदीव के पास रहकर भारत के संबंध में डेटा जुटा रहा है। मालदीव ने अपने ईईजेड में चीन के इस जासूसी जहाज को इसकी अनुमति प्रदान की हुई है। इससे पहले श्रीलंका की ओर से भी चीन के एक जासूसी जहाज को इसी प्रकार की अनुमति दी गई थी।
यह सब भारत सरकार की आपत्ति के बावजूद हो रहा है। श्रीलंका और मालदीव वे देश हैं, जोकि पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में हैं और उसके कहे के मुताबिक भारत के खिलाफ गतिविधियों में संलिप्त हैं। गौरतलब बात यह है कि मालदीव में चीन का जासूसी जहाज लक्षद्वीप से महज 700 किलोमीटर की दूरी पर लंगर डाले हुए है। यानी वह भारत की सुरक्षा सीमा के इतना नजदीक है। क्या इसे मालदीव सरकार की खुराफात नहीं समझा जाएगा कि भारत की रक्षा चुनौतियों को दरकिनार करते हुए वह चीन जैसे अविश्वसनीय देश को इसकी अनुमति दे चुका है। यह न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक विषय है। सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि आखिर चीन ऐसी हरकतें करके अपना क्या हित साधना चाहता है।
मालदीव और भारत के हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन अब चीन की चाल में आकर वहां के मंत्री और खुद राष्ट्रपति ने जिस प्रकार से अपना रवैया बदला है, वह हैरतनाक है। राष्ट्रपति मुइज्जू ने चीन की राजकीय यात्रा से स्वदेश लौटने के बाद भारत को अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित करते हुए कहा था कि किसी को भी मालदीव को धमकाने का लाइसेंस हासिल नहीं है। मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू की चीन यात्रा का सबब यह हैै कि चीन ने न केवल उसकी पीठ पर अपना हाथ रखा, अपितु मालदीव को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए अपना केंद्र बना लिया है। इसका उदाहरण इससे भी मिलता है कि मालदीव सरकार ने उन 88 भारतीय सैनिकों को तुरंत मालदीव छोडऩे को कहा, जोकि वहां भारत द्वारा सौंपे गए हेलीकॉप्टरों के रखरखाव आदि के लिए तैनात हैैंं। इसे क्या कहा जाएगा, यह मालदीव की ओर से खुद लिया गया निर्णय नहीं है, अपितु वह किसी से प्रेरित है और वह प्रेरक चीन है।
चीन ऐसा देश बन चुका है, जोकि दुनिया के तमाम देशों के लिए समस्या खड़ी कर रहा है। उसने भारत की घेराबंदी करते हुए उसके आसपास के छोटे देशों को अपना गुलाम बना लिया है। उन्हें कर्ज के जाल में फंसा कर अपनी मनमर्जी पूरी कर रहा है। अब मालदीव उसका नया शिकार है, हैरानी इसकी है कि इसके बावजूद मालदीव यह नहीं समझ पा रहा है। मालदीव की नई सरकार ने भारत के साथ संबंधों को अब इस स्थिति में पहुंचा दिया है तो इसका जवाब देश की जनता को उससे मांगना चाहिए। मालदीव में चीन का वर्चस्व तेजी से बढ़ रहा है, इसका नमूना यह है कि 2023 में अचानक चीनी पर्यटकों की संख्या मालदीव में बढ़ी है। 2022 में मालदीव में संख्या के लिहाज से चीन 27वें नंबर पर था, जो 2023 में अचानक तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।
गौरतलब है कि चीन के साथ नेपाल ने भी अपनी नजदीकियों इतना बढ़ा लिया था कि उसने भारत के साथ जिसके सदियों पुराने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हैं, की अनदेखी शुरू कर दी थी। नेपाल की बड़ी आबादी भारत में रोजगार और सेना में नियुक्त है, लेकिन इसके बावजूद राजनीति की वजह से वहां की पूर्व सरकार ने चीन को महत्व देना शुरू कर दिया। अब नेपाल में चीन की करतूतों का पर्दाफाश हो रहा है, क्योंकि वहां तमाम प्रोजेक्ट चीन की ओर से लटका दिए गए हैं। इसकी वजह कूटनीतिक हो सकती है, क्योंकि चीन सरकार इसी तरह के कारनामों में माहिर है।
ऐसा ही रवैया पाकिस्तान में भी चीन का नजर आ रहा है। पाकिस्तान, भारत के साथ दुश्मनी निभा रहा है लेकिन चीन की चाल में फंसने का उसे रंज नहीं है। यह सब एशिया महाद्वीप में बने रहे नए वैश्विक समीकरणों की कहानी कहता है। हालांकि इन संदर्भों में भारत सरकार को आक्रामक रणनीति के साथ कुटनीतिक कदमों के जरिये विरोधियों को नियंत्रित करना होगा।
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